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आधुनिक कृषि

भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

आइए जानते हैं कि भूमि का विकास किस तरह से किया जाता हैं और भूमि विकास पूर्ण हो जाने के जुताई और बीज बोने के क्या तरीके हैं। 

जुताई और बीज बोने की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें। आइये जानें भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण और आधुनिक कृषि यंत्र

बीज बोने के तरीके

बुवाई का क्या अर्थ होता है, मिट्टी की विशेष गहराई को प्राप्त करने के बाद अच्छे अंकुरण बीजों को बोने की क्रिया को बुवाई कहते हैं। कृषि क्षेत्र में बुवाई का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। 

बीच होने से पहले भूमि को अच्छी तरह से समतल किया जाता है।ताकि बीज बोने के टाइम जमीन उथल-पुथल या उसके कण भूमि में ना रह जाए।भूमि में बीज डालने के बाद बीज की दूरी को ध्यान में रखना आवश्यक होता है इससे अंकुरण अच्छे से फूट सके।

भूमि विकास के लिए भूमि की जुताई

किसी भी फसल की बुआई के लिए जुताई सबसे पहला कदम होती है। मिट्टी को उल्टा पुल्टा कर थोड़ा ढीला करा जाता है।जिससे पौधों और पोषक तत्वों की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके। 

जुताई के द्वारा रोपाई में बहुत ही मदद मिलती है और अंकुरण आसानी से भूमि में प्रवेश कर लेते हैं।मिट्टी ढीला करने से सबसे बड़ा फायदा यह होता है।कि मिट्टी को ढीला करने से इनमें मौजूद रोगाणुओं और केंचुओं के विकास में बहुत ही आसानी होती है।

जिससे फसलों को उच्च कोटि का लाभ पहुंचता है। साथ ही साथ यह जुताई खरपतवार आदि में भी काफी सहायता देती है।जुताई के द्वारा मिट्टी पोषक तत्वों से पूरी तरह से भरपूर बनाई जाती है। 

सभी किसान, कृषि फसलों की बुवाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करना अनिवार्य समझते हैं।कभी-कभी जुताई  फसलों के आधार पर भी की जाती है। की फसल किस तरह की है ,और उसे कितने तरह की जताई की जरूरत है किन स्थितियों में।

किसान अपनी भूमि की जुताई के लिए कल्टीवेटर , कुदाल, हल आदि उपकरणों का प्रयोग करते हैं।कभी-कभी मिट्टी काफी कठोर हो जाती है और फसलों की जुताई करने के लिए हैरो का इस्तेमाल भी किया जाता है। जिसके बाद जुताई के बाद भी कई प्रकार के जुताई की जाती है।

बुवाई के लिए भूमि को समतल करना

किसान खेतों की जुताई के बाद जो दूसरी क्रिया करते हैं वह भूमि समतल है। समतल यानी भूमि को एक समान करना होता है हल यह किसी भी अन्य उपकरणों के द्वारा। भूमि समतल विभिन्न विभिन्न समय पर फसलों के आधार पर बदलता रहता है। 

किसान समतल के लिए खेतों में मेड, खांचे या अन्य प्रकार की क्रिया को शामिल किए रहते हैं। जो विशिष्ट फसलों के लिए बहुत ही आवश्यक होती हैं। भूमि समतल करने से फसलों में सिंचाई काफी आसानी से हो जाती हैं। 

पौधों को अच्छी तरह से पानी की प्राप्ति हो जाती है पौधों के पनपने और पूर्ण रूप से उत्पादन करने के लिए। भूमि समतल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरण यानी लेवलर का इस्तेमाल किया जाता है। लेवलर उपकरण का इस्तेमाल कर भूमि को समतल किया जाता है। 

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खाद का चयन करना

बुवाई के बाद खाद के रूप में गाय की गोबर, नीम के अर्क, केचुआ सिंथेटिक उर्वरकों आदि जैसे जैविक संशोधनों का उपयोग किया जाता है। 

खेतों में मिट्टी की खाद डालने से पहले उसका अच्छी प्रकार से परीक्षण कर लेना चाहिए ,ताकि किसी भी प्रकार से फसलों को हानि ना हो, और मिट्टियों में मौजूद पोषक तत्व और खनिजों की उचित मात्रा की उपलब्धता पूर्ण रूप से सुनिश्चित हो। कुछ प्राकृतिक संशोधन के बाद हमें मिट्टी में खाद मिलानी चाहिए। 

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बीज बोने के एक प्रसारण तरीके

किसान भाई आसान तरीके से बीज बोने का प्रसारण करते हैं। खेतों में बीजों को बेहतरीन ढंग से तैयार कर लिया जाता है और अपने हाथों से भूमि पर बीजों को फेंकना शुरू कर दिया जाता हैं। 

आप हाथ या किसी अन्य उपकरण के द्वारा भी बीज को खेतों में फेंक सकते हैं।  बीज बोने से पहले बीजों का अच्छे से चयन कर लेना चाहिए। कि बीज भूमि के लिए उचित है या नहीं।बीजो को अच्छी तरह से खेतों में बिखेर देना चाहिए।

बीज बोने के लिए डिब्लिंग का इस्तेमाल

खेतों में आसानी से बीज बोने के लिए आजकल किसान भाई डिब्लिंग का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इस उपकरण के जरिए बीजों को डिब्बलर में रखा जाता है। डिब्बलर के निचले हिस्से पर एक छेद होता है जो बीज रखने के लिए उपयोग किया जाता है। 

डिब्बलरों को कोई भी कुशल किसान या श्रमिक आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं। यह एक शंक्वाकार कहने वाला यंत्र है। यह खेतों के बीच, बीज बोने के लिए खेतों में छेद करता है और अंकुरित बीजों को विकसित करता है।

डिब्लिंग विधि का इस्तेमाल कर समय की काफी बचत होती है। डिब्लिंग विधि का इस्तेमाल किसान ज्यादातर सब्जियों की फसल बोने तथा अन्य फसलों के लिए ज्यादा इस्तेमाल किया जाता हैं।

बीज बोने के लिए उपकरण

किसान बीज बोने के लिए अपना आसान और पारंपरिक तरीके का इस्तेमाल करते हैं,जैसे कि अपने हल के पीछे बीजों को गिराते रहते हैं भूमियों पर या आसान हल उपकरण का इस्तेमाल हैं बीज बोने के लिए। 

इनका उपयोग ज्यादातर गेहूं, चना ,मक्का जौ आदि बीजों की बुवाई करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में किसान भूमि को हल द्वारा गहराई करता है ,और उसके पीछे दूसरा व्यक्ति बीजों को खेतों डालता रहता है। इस क्रिया से समय की बहुत हानि होती है।

भूमि विकास के लिए पशु चालित पटेला हैरो उपकरण का इस्तेमाल

पशु चालित पटेला हैरो की लंबाई लगभग 1.50 मीटर और मोटाई कम से कम 10 सेंटीमीटर होती है।पशु चालित पटेला हैरो लकड़ी का बना  हुआ उपकरण होता है। 

इस उपकरण से किसानों को बहुत ही सहायता मिलती है ,क्योंकि इसकी ऊपरी सतह पर घुमावदार हुक बंधा रहता है जो मिट्टियों को उपर नीचे करने में सहायक होता है। 

तथा इस उपकरण के जरिए मिट्टी में भुरभुरा पन आ जाता है।इसका मुख्य कार्य फसल के टूठ, वह इक्कट्ठा करना और खरपतवार को मिट्टी से अलग करना होता है।

पटेला 30 किसानों का कार्य करता है, इसके द्वारा 58 प्रतिशत संचालन में लगने वाले खर्चों की बचत होती है। तथा भूमि उपज में 3 से 4% की बढ़ोतरी होती है।

ब्लेड हैरो उपकरण का इस्तेमाल

या उपकरण स्टील का बना हुआ होता हैं, इसका मुख्य कार्य खरपतवार निकालने के लिए होता है। इस उपकरण में लगे ब्लेड के जरिए खरपतवार आसानी से निकाले जाते हैं। तथा इस उपकरण में लोहे के बड़े बड़े कांटे भी लगे होते। 

इस यंत्र को चलाने के लिए हरिस वह हत्था लगा हुआ होता है। यह यंत्र पूर्ण रूप से स्टील का बना हुआ होता है। इस उपकरण की मदद से किसान मूंगफली आलू आदि फसल की खुदाई भी कर सकते हैं। 

इस यंत्र के द्वारा किसानों को कम से कम 24 मजदूरों की बचत होती हैं और 15% जो खर्च संचालन में लगता है उसकी भी बचत होती है। 3 से  4% फसल उपजाऊ में काफी बढ़ोतरी भी होती है।

ट्रैक्टर चालित मिटटी पलट हल का इस्तेमाल

ट्रैक्टर चालित मिटटी पलट हल स्टील का बना हुआ होता है। इसका जो भाग होता है वो फार,मोल्ड बोर्ड, हरिस , भूमि पार्श्व  वह (लैंड साइड), हल मूल (फ्राग) आदि का होता है। 

इस उपकरण की सहायता से मिट्टी जितने भी सख्त हो, उसको तोड़ा जा सकता है। यह हल सख्त से सख्त मिट्टी को तोड़ने में सक्षम हैं।

यह हल कम से कम 40 से लेकर 50% मजदूरों का काम अकेले करता है। इसकी सहायता से 30% संचालन का खर्चा बचता है। इस हल की सहायता से किसानों को कम से कम 4 से 5% की उच्च कोटि की खेती की प्राप्ति होती है। 

यह हल की जुताई की गहराई का नियंत्रण लगभग हाइड्रोलिक लीवर या ट्रैक्टर के थ्री प्वाइन्ट लिंकेज से किया जाता हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस पोस्ट के जरिए भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण व अन्य उपकरणों की पूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी। 

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कृषि में गाय, भेड़, बकरी, चींटी, केंचुआ, पक्षी, पेड़ों का महत्व

कृषि में गाय, भेड़, बकरी, चींटी, केंचुआ, पक्षी, पेड़ों का महत्व

भारतीय कृषि इतिहास में प्रकृति प्रदत्त जीव जंतुओं के खेती किसानी में उपयोग लेने संबंधी तमाम प्रमाण मौजूद हैं। बिसरा दिए गए ये वे प्रमाण हैं जिनको पुनः उपयोग में लाकर, किसान मित्र खेती की उर्वरता के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य रक्षा मिशन में, देश-दुनिया के साथ हाथ बंटा सकते हैं।

कृषक करते हैं भेड़ के झुंड का इंतजार खाद के बदले किसान करते हैं भुगतान प्रकृतिक ड्रोन ऐसे करते हैं प्रकृति की मदद

भारत के धर्म शास्त्र एवं पुराण में योनिज और आयोनिज जैसे दो वर्गों में विभाजित 84 लाख योनियों का उल्लेख किया गया है। इन समस्त जीव योनियों के प्रति भारत में सम्मान का भाव रखने की सीख बचपन से दी जाती है। कुल 84 लाख योनियों से जनित जीवों के जीवन चक्र में बगैर खलल डाले, सहज प्राकृतिक चक्र के मुताबिक जीवन उपभोग की सामग्री जुटाने की कृषि विधियां भी भारत में बखूबी पल्लवित हुईं। गायों की सेवा कर बछड़ा, दूध, दही, मक्खन, छाछ और धरती के सर्वोत्कृष्ट खाद्य पदार्थ घी की उत्पत्ति के अलावा सर्प (सांप) नियंत्रण तक की मान्य विधियां भारत के गौरवमयी इतिहास का हिस्सा रही हैं। चींटी को दाना देने से लेकर कौओं तक को भोजन समर्पित करने की परंपरा भी भारतीय जीवन दर्शन की बड़ी उपलब्धि है। भारतीय कृषि इतिहास में प्रकृति प्रदत्त जीव जंतुओं के खेती किसानी में उपयोग लेने संबंधी तमाम प्रमाण मौजूद हैं। बिसरा दिए गए ये वे प्रमाण हैं जिनको पुनः उपयोग में लाकर, किसान मित्र खेती की उर्वरता के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य रक्षा मिशन में देश-दुनिया के साथ हाथ बंटा सकते हैं।

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आधुनिक कृषि के दुष्परिणाम

दुष्परिणामों को आधुनिक कृषि में उपयोग में लाए जा रहे खेती किसानी के तरीकों से बखूबी समझा जा सकता है। निश्चित ही ट्रैक्टर, रसायन, उपचारित बीजों जैसे आधुनिक कृषि तरीकों से किसान को कम समय में बंपर पैदावार के साथ ज्यादा कमाई हासिल हो रही हो, लेकिन उसके उतनी तेज गति से दुष्परिणाम भी हो रहे हैं। आधुनिक कृषि तरीकों को अपनाने के कारण खेत की उपजाऊ क्षमता के साथ ही, पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। मानव स्वास्थ्य से जुड़े अध्ययनों में रसायन प्रयुक्त उपज उत्पाद के सेवन से मानव की औसत आयु के साथ ही उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ रही है। ऐसे में आधुनिक कृषि के मुकाबले परंपरागत कृषि में अपनाए जाने वाले प्राकृतिक तरीकों को अपनाकर मानव और प्रकृति स्वास्थ्य संबंधी संतुलन को बरकरार रखा जा सकता है। ट्रेक्टर से खेत की जुताई आसान जरूर है, लेकिन इससे खेत में मौजूद प्राकृतिक जीव जंतुओं के आवास (बिल, बामी आदि) के खराब होने का खतरा रहता है। कृषि में कैसे मददगार हैं जीव-जंतु आधुनिक ड्रोन तकनीक का खेती में भले ही नया मशीनी प्रयोग देख मानव आश्चर्यचकित हो, लेकिन तोतों, कौओं, गौरैया आदि के जरिये प्रकृति बगैर किसी तरह का प्रदूषण फैलाए अपना विस्तार करती रही है। बगैर डीजल, पेट्रोल बिजली के संचालित होने वाले पक्षी प्राकृतिक रूप से बीजारोपण आदि में प्रकृति का सहयोग प्रदान करते हैं। कीट प्रबंधन में भी पक्षी एवं अन्य जीव प्रकृति चक्र का अहम हिस्सा एवं सहयोगी कारक हैं।

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कृषि में पशुओं का महत्व

प्राकृतिक कृषि पद्धति में पशुओं का अहम स्थान है। बैल आधारित जुताई खेतों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी मानी गई है। ट्रैक्टर के बजाए हल से खेत जोतने पर खेत की मिट्टी की गहराई में मौजूद उर्वरा शक्ति नष्ट नहीं होती। ट्रैक्टर के मुकाबले पशु धुआं नहीं छोड़ते, पेट्रोल-डीजल नहीं पीते ऐसे में पर्यावरण संतुलन बनाने में भी मददगार साबित होते हैं। उल्टे इनके गोबर से खेत की उपजाऊ शक्ति में ही वृद्धि होती है।

भेड़-बकरी से कृषि में लाभ

भेड़-बकरी की इन विशेषताओं को जानकर अनभिज्ञ किसान भी मालवा, राजस्थान के किसानों की तरह इन पशुओं को पालने वाले पालकों और पशुओं का काफिला गुजरने का बेसब्री से इंतजार करने लगेंगे। मध्य प्रदेश में मालवा अंचल के किसान उनके खेतों के आसपास से गुजरने वाले भेड़, बकरी के समूहों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। दरअसल, राजस्थान के भेड़ (गाटर), बकरी, ऊंट आदि मवेशियों को पालने वालों का समूह प्रतिवर्ष अपने मवेशियों को चराने के लिए मध्य प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से होकर गुजरता है। मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के किसान यायावर जीवन जीने वाले इन पशु पालकों से उनके मवेशियों के झुंड को खेत में रोकने का अनुरोध करते हैं। इतना ही नहीं खेत के मालिक किसान, पशुपालकों को अनाज, कपड़े एवं रुपए तक पशुओं को खेत में ठहराने के ऐवज में प्रदान करते हैं।

भेड़ की लेंड़ी की शक्ति

आधुनिक किसानी में परंपरागत खेती का सम्मिश्रण कर जैविक, या फिर हर्बल पदार्थों एवं घोलों को खेत की मिट्टी में मिलाने की सलाह दी जाती है, हालांकि यह विधि भारत के लिए नई नहीं है। अनुभवी किसान भेड़ों के झुंड को इसलिए अपने खेतों में ठहरवाते हैं ताकि भेड़, बकरियों की लेंड़ियां खेत की मिट्टी में मिल जाएं। जंगली पत्ती, वनस्पति चारा खाने वाली भेड़-बकरियों की लेंड़ी में भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करने की अपार क्षमता होती है। ऐसे में बगैर किसी कृत्रिम तरीके से तैयार खाद के मुकाबले प्राकृतिक तरीके से ही खेत में भेड़-बकरी जनित जैविक खाद का सम्मिश्रण भी हो जाता है। शाजापुर जिले के खामखेड़ा ग्राम निवासी पवन कुमार बताते हैं कि, वे अपने दादा-परदादा के समय से खेतों में भेड़-बकरियों के झुंड को ठहरवाते देख रहे हैं। इससे खेत की उत्पादन क्षमता में प्राकृतिक तरीके से काफी वृद्धि होती है। यह हमारे लिए एक परंपरा बन चुकी है क्योंकि भेड़ पालक प्रति वर्ष हमारे इलाके से गुजरते हैं तो हमारे या आसपास के किसानों के खेतों पर अपना डेरा जमाते हैं।

जैविक खाद

मिट्टी की उर्वरा शक्ति में चींटी, केंचुआ के अलावा अन्य दृश्य-अदृस्य सूक्षम जीवों की जरूरत एवं महत्व को जानकर अब अधिकतर किसान जैविक खाद के उपयोग को अपना रहे हैं। छोटे समझ में आने वाले चींटी और केंचुआ खेती के स्वास्थ्य के लिए खासे मददगार हैं। इनकी मदद से भूमि का भुरभुरापन कायम रहता है वहीं कीट रक्षा प्रबंधन में भी ये किसान का प्राकृतिक रूप से हाथ बंटाते हैं।

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पेड़ों का महत्व

खेत का दायरा बढ़ाने के लिए आज के कृषक खेत के उन फलदार पेड़ों को काटने में भी गुरेज नहीं करते, जिन्हें उनके दूरदर्शी पूर्वजों ने बतौर विरासत सौंपा था। मौसम में इन पेड़ों से जहां फल के रूप में आय सुनिश्चित रहती है, वहीं फल, पत्ती, छाल, लकड़ी आदि से भी अतिरिक्त आय किसान को होती रहती है। अमरूद, आम, बेर, बांस, करौंदा, बेल, कैंथा, जामुन आदि के पेड़ों को खेत की मेढ़ के आसपास करीने से लगाकर किसान अपनी अतिरिक्त आय सुनिश्चित कर सकता है। इन पेड़ों पर पक्षियों का बसेरा होने से कीट-पतिंगों के नियोजन में भी किसान को मदद मिलती है। या यूं कहें कि पक्षियों के निवास के कारण कीट-पतिंगे खेत के पास कम ही फटकते हैं।

आधुनिक तरीकों का समावेश

प्राकृतिक कृषि पद्धिति में आधुनिक तरीकों का सम्मिश्रण कर किसान खेती को कम लागत वाला भरपूर मुनाफे का धंधा बना सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सख्त भूमि, अनाज की ढुलाई आदि कृषि कार्य में ट्रैक्टर आदि की मदद ली जा सकती है। क्यारी एवं टपक सिंचन विधि में आधुनिक तरीकों का उपयोग कर उसे और लाभदायक बनाया जा सकता है। रासायनिक पदार्थों की जगह गौपालन, भेड़-बकरी पालन कर जैविक खाद का खेत पर ही उत्पादन कर प्राकृतिक चक्र बरकरार रखा जा सकता है।

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कृषि में संगीत का सहारा

कृषि में म्यूजिक का भी तड़का लगाते देखा जा रहा है। देश-विदेश के कई किसानों ने खेतों में समय आधारित राग-रागनियों की ध्वनि पैदा कर उपज पैदावार में वृद्धि के दावे किए हैं। आवाज की रिकॉर्डिंग आधारित उपकरणों एवं लाउड स्पीकर से कुत्तों या जिन जानवरों से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मवेशी डरते हैं की आवाज निकालकर खेतों की जानवरों से सुरक्षा की जा सकती है।

फसल खराब होने पर किसानों को मिली क्षतिपूर्ति, सरकार ने जारी की 3 हजार 500 करोड़ की मुआवजा राशि

फसल खराब होने पर किसानों को मिली क्षतिपूर्ति, सरकार ने जारी की 3 हजार 500 करोड़ की मुआवजा राशि

इस साल भारी बरसात के कारण महाराष्ट्र की फसलों को कई प्रकार का नुकसान हुआ है, जिससे किसानों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि बरसात के साथ-साथ कीटों के भीषण प्रकोप से किसानों की फसलें पूरी तरह से चौपट हो गईं हैं। इसको देखते हुए पिछले कई दिनों से राज्य के किसान, सरकार से फसलों को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग कर रहे थे। अंततः किसानों की यह मांग सरकार तक पहुंच गई है। राज्य के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने कहा है कि मुश्किल की इस घड़ी में सरकार किसानों के साथ खड़ी है। किसानों की परेशानियों को देखते हुए सरकार ने मुआवजा के तौर पर 3 हजार 500 करोड़ रुपये की राशि जारी की है, जो प्रभावी किसानों के बैंक खाते में भेजी जाएगी। उन्होंने यह भी बताया कि इस राशि का वितरण 15 सितम्बर से प्रारम्भ हो चुका है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार में इस प्रकार की मुआवजा राशि के वितरण में काफी धांधली हुई थी। लेकिन इस बार राज्य की शिंदे सरकार किसानों के प्रति संवेदनशील है, इसलिए किसानों को हुई क्षति की भरपाई की जा रही है। राज्य सरकार किसानों के लिए मुआवजा राशि जारी करने में पूरी तरह से सक्षम है। इस बीच कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने कहा कि भीषण बरसात और कीटों के प्रकोप से राज्य में लगभग 27 लाख किसान प्रभावित हुए हैं। राज्य के मराठवाड़ा क्षेत्र में कीटों के हमले से फसलों को भारी नुकसान हुआ है। इस दौरान सबसे ज्यादा नुकसान झेलने वाली फसल सोयाबीन रही, जिसे कीट खाकर चट कर गए। ऐसे किसान जिनकी फसलों को कीटों ने नुकसान पहुंचाया है, उनके लिए सरकार ने 97 करोड़ रूपये की राशि जारी की है। ये भी पढ़े: किसानों में मचा हड़कंप, केवड़ा रोग के प्रकोप से सोयाबीन की फसल चौपट इस राशि को सहायता राशि के तौर पर किसानों के बीच वितरित किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा, सभी जिला अधिकारियों ने किसानों का पैसा उनके बैंक खातों में ऑनलाइन माध्यम से ट्रांसफर करना शुरू कर दिया है, जो जल्द ही किसानों को मिल जाएगा। उनकी सरकार किसानों के खातिर केंद्र सरकार से ऑनलाइन ई-पीक निरीक्षण में बदलाव करने की मांग भी करेगी। सत्तार ने एकनाथ शिंदे सरकार को किसानों का हितैषी बताया, साथ ही कहा कि एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस किसानों की सभी प्रकार की समस्याएं सुलझाने में सक्षम हैं। इस बार की खरीफ फसल के दौरान हुई बरसात ने किसानों की फसलों में भारी नुकसान पहुंचाया है, रही सही कसर घोंघों ने पूरी कर दी है। घोंघों ने भी फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसके कारण राज्य में फसलें चौपट हो गईं हैं। अगर हम हम फसलों के नुकसान का जिलेवार आंकलन करें तो सबसे ज्यादा नुकसान लातूर, उस्मानाबाद और बीड जिलों में उगाई गई फसलों को हुआ है। इन जिलों में फसलों के ऊपर दोहरी मार पड़ी है। एक तो पहले ज्यादा बरसात की वजह से यहां की फसलें चौपट हो गईं हैं, बाकी रही सही कसर घोंघों ने पूरी कर दी है। इन जिलों में किसानों की स्थित को देखते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इन 3 जिलों के लिए 98 करोड़ 58 लाख रुपये की मुआवजा राशि जारी की है, जिसे यहां के प्रभावित किसानों के बीच वितरित किया जा रहा है ताकि नुकसान की थोड़ी बहुत भरपाई की जा सके। इसके साथ ही कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने कहा कि एकनाथ शिंदे सरकार राज्य में प्रगति लाने के लिए आधुनिक कृषि पर ध्यान केंद्रित कर रही है, ताकि राज्य के किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों के साथ-साथ आधुनिक कृषि यंत्रों से अवगत करवाया जा सके। इससे फायदा यह होगा कि किसान कम समय में, कम लागत के साथ ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर पाएंगे, जिससे किसानों की आमदनी में भी वृद्धि होगी। ये भी पढ़े: खेती-किसानी के हर क्षेत्र में कृषि उपकरण उपलब्ध करा रही परफुरा टेक्नोलॉजीज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड मुख्यमंत्री का प्रयास है कि जो भी किसान आधुनिक कृषि को अपनाएं वो अन्य किसानों को भी आधुनिक खेती के महत्व को समझाएं, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इस प्रकार खेती करके लाभान्वित हो सकें। उन्होंने कहा, सरकार इस बात का पूरा प्रयास कर रही है कि आधुनिक कृषि यंत्रों की जानकारी गांव के अंतिम किसान तक पहुंचे, ताकि हर किसान इस तरह के कृषि यंत्रों और तकनीक से लाभान्वित हो सके, जिससे किसानों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी के साथ ही उनकी आय में भी वृद्धि हो और राज्य का किसान खुश रहे।
हरियाणा राज्य में कृषि सम्बंधित उपकरणों पर मिल रहा ८० % सब्सिडी, समय से करलें आवेदन

हरियाणा राज्य में कृषि सम्बंधित उपकरणों पर मिल रहा ८० % सब्सिडी, समय से करलें आवेदन

आजकल कृषि जगत में कृषि उपकरणों की अहम भूमिका है, आधुनिक कृषि यंत्रों से किसान की मेहनत के साथ साथ उनकी लागत में भी बेहद कमी आयी है। पहले किसान काफी परिश्रम करके फसल को उगाते थे। लेकिन आधुनिक विज्ञान की सहायता से नवीन कृषि उपकरणों की खोज हो रही है, जिससे किसानों के लिए उपयोगी कृषि यंत्रों की उपलब्धता तीव्रता से बढ़ी है। सरकार उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कृषि सम्बंधित उपकरणों पर अनुदान देने की योजना लाती रहती है। इसी सन्दर्भ में फ़िलहाल हरियाणा सरकार किसानों के लिए ८० प्रतिशत तक का अनुदान देने का आह्वान कर चुकी है, जिसमें विभिन्न प्रकार की मशीनें जैसे कि बुवाई, छिड़काव और कटाई से सम्बंधित उपकरण भी शामिल हैं।

हरियाणा सरकार ८० प्रतिशत तक क्यों दे रही है कृषि यंत्रों पर अनुदान ?

किसानों की आर्थिक हालत को देखते हुए सरकार ये भली भांति जानती है कि बहुतायत किसान आधुनिक उपकरणों को खरीदने के लिए सक्षम नहीं है। लेकिन पैदावार में वृद्धि और किसान की लागत में कमी के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों की अत्यंत आवश्यकता है। सरकार किसानों की समस्या को समझते हुए उनके लिए ८० प्रतिशत अनुदान प्रदान करने की इस मुहिम से, किसानों को आर्थिक तंगी से निजात दिलाना चाहती है। साथ ही हरियाणा राज्य को काफी उन्नत राज्य बनाने की राह पर चलना शुरू कर रही है, क्योंकि हरियाणा राज्य में अधिकतर लोग कृषि आश्रित होते हैं, इसलिए कृषि जगत को अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी भी बोला जाता है। किसान की उन्नति से ही राज्य और देश की उन्नती का मार्ग जाता है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=LH7w59jnW-M[/embed]

कौन कौन से कृषि उपकरणों पर मिल रहा है अनुदान ?

हरियाणा राज्य सरकार द्वारा इन कृषि उपकरणों पर मिल रहा है अनुदान जिसमें, रोटावेटर, हे रेक मशीन, मोबाइल श्रेडर, रिप्पर बाइंडर, स्ट्रॉ बेलर, फ़र्टिलाइज़र ब्रॉडकास्टर, ट्रैक्टर ड्राइविंग पाउडर वीडर, लेसर लैंड लेवलर समेत ११ कृषि उपकरण सम्मिलित हैं। हरियाणा सरकार ने राज्य के किसानों के लिए कृषि विभाग के माध्यम से वेबसाइट https://agriharyana.gov.in/ पर जानकारी उपलब्ध कराई है, जहाँ किसान भाई आवेदन कर सकते हैं और इसके लिए कृषि केंद्र की सहायता भी ले सकते हैं।

पूर्व में भी पराली के अवशेष से निजात के लिए उपकरण अनुदान देने के लिए मांगे थे आवेदन

हरियाणा राज्य सरकार ने पराली से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए जरूरी कृषि उपकरणों पर अनुदान देने की घोषणा की और आवेदन करने के लिए बोला था, जिससे पराली के अवशेष को नष्ट किया जा सके और दिल्ली समेत अन्य शहरों को भी प्रदुषण की मार से बचाया जा सके।
कृषि में लागत कम करें, मुनाफा खुद बढ़ेगा

कृषि में लागत कम करें, मुनाफा खुद बढ़ेगा

यूपी के किसान इन दिनों एक नए तरीका से काम कर रहे हैं। यह तरीका है नवीनतम तकनीकी का प्रयोग और प्राकृतिक खेती की तरफ झुकाव। अब जीरो बजट की खेती के तौर पर सरकार किसानों को हर संभव मदद कर रही है। किसानों को यह बात समझ में आ गई है, कि जब तक लागत कम नहीं होगा, उनका मुनाफा बढ़ने से रहा। उत्तर प्रदेश लगातार नए प्रयोग कर रहा है, यह प्रयोग खेती के क्षेत्र में भी दिख रहा है। यह किसानों के लिए लाभ का सौदा बनता जा रहा है। परंपरागत किसानी को कई किसानों ने बहुत पीछे छोड़ दिया है। अब वे खेती के नए प्रयोगों से गुजर रहे हैं, वे जीरो बजट खेती की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। इसमें यूपी की योगी सरकार उनकी मदद कर रही है। इन मामलों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद ही देख रहे हैं।


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मक्का, गेहूं, धान से फूल-सब्जी तक

एक दौर था, जब यूपी का किसान मक्का, गेहूं, धान की खेती पर ही पूरी तरह निर्भर था। अचरज की बात है, कि अब इन किसानों ने इन फसलों के साथ ही सब्जियों की भी खेती शुरू कर दी है। आचार्य देवव्रत के जीरो बजट खेती का फार्मूला इन किसानों को अब समझ में आ गया है। यही कारण है, कि अब किसान अपने घर के आगे-पीछे भी फूल-फल की खेती करने से हिचक नहीं रहे हैं।

जोर प्राकृतिक खेती पर

बीते दिनों यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि खेती में अत्याधुनिक तकनीकी का प्रयोग व प्राकृतिक खेती आज की जरूरत है। पुराने ढर्रे पर काम करने से कुछ खास हासिल होने वाला नहीं। अगर कुछ बढ़िया करना है, तो नई तकनीकी को आजमाना पड़ेगा, पूरी दुनिया में खेती के क्षेत्र में नए प्रयोग हो रहे हैं। अगर यूपी इनमें पिछड़ा तो पिछड़ता ही चला जाएगा।

गो आधारित खेती

योगी ने सुझाव दिया कि क्यों न गौ आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाए यह जीरो बजट खेती है। इसके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। उनका मानना था, कि प्राकृतिक खेती में तकनीकी से उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। हां, इसके लिए थोड़ी जागरूकता व सावधानी बरतने की जरूरत है। अगर हम ऐसा कर लेते हैं, तो प्राकृतिक खेती के जरिये कम लागत में अधिक उत्पादकता प्राप्त कर किसान भाई अपनी आमदनी अच्छी-खासी बढ़ा सकते हैं। परंपरागत खेती को परंपरागत तरीके से करने में कोई लाभ नहीं है, अगर परंपरागत खेती को नई तकनीकी के इस्तेमाल के साथ किया जाए तो नतीजे शानदार आएंगे। योगी का कहना था, कि आधुनिक तरीके से खेती करने के साथ किसानों को बाजार की मांग और कृषि जलवायु क्षेत्र की अनुकूलता के आधार पर बागवानी, सब्जी व सह फसली खेती की ओर भी अग्रसर होना होगा। इससे उनकी अधिक से अधिक आमदनी हो सकेगी।

खेती कमाई का बड़ा साधन

आपको बता दें कि यूपी, आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य तो है ही, खेती-किसानी ही यहां की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा जरिया भी है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि देश की सबसे अच्छी उर्वर भूमि और सबसे अच्छा जल संसाधन उत्तर प्रदेश में ही है। यहां की भूमि की उर्वरकता व जल संसाधन की ही देन है, कि देश की कुल कृषि योग्य भूमि का 12 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद देश के खाद्यान्न उत्पादन में अकेले उत्तर प्रदेश का योगदान 20 प्रतिशत का है।


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तीन गुना तक बढ़ सकता है प्रदेश का कृषि उत्पादन

यूपी के मुख्यमंत्री मानते हैं, कि प्रदेश का कृषि उत्पादन अभी और तीन गुणा बढ़ सकता है। इसके लिए हमें बेहतर किस्म के बीज की जरूरत तो पड़ेगी ही इसके साथ ही आधुनिक कृषि उपकरणों की भी जरूरत पड़ेगी। हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि खेती की लागत कम हो और मुनाफा बढ़े। यूपी सरकार इसके लिए व्यापक अभियान चला भी रही है।
नए साल पर अपनी खेती को बेहतर बनाने के लिए खरीदें आधुनिक कृषि यंत्र, ये सरकारें दे रही हैं बंपर सब्सिडी

नए साल पर अपनी खेती को बेहतर बनाने के लिए खरीदें आधुनिक कृषि यंत्र, ये सरकारें दे रही हैं बंपर सब्सिडी

भारत सरकार चाहती है, कि देश के किसान अपने खेतों में बंपर उत्पादन प्राप्त करें, जिससे उनकी आय में बढ़ोत्तरी हो पाए। इसके साथ ही अगर किसानों की बात करें तो अब किसानों ने भी आधुनिक खेती को अपनाया है। जिसमें किसान खेती-किसानी में आधुनिक तकनीक और कृषि यंत्रों का इस्तेमाल करने लगे हैं। लेकिन यह अभी तक सिर्फ अमीर और बड़े किसानों तक ही सीमित है। अमीर और बड़े किसानों के पास पर्याप्त संसाधन और पैसा होने के कारण वो आधुनिक तकनीक और कृषि यंत्रों को उपयोग करते हैं, लेकिन छोटे किसान अब भी इससे वंचित हैं। भारत में ट्रेंड देखा गया है, कि अब लघु-सीमांत किसानों के साथ अब छोटे किसानों की भी आधुनिक कृषि यंत्रों की तरफ रुचि बढ़ती जा रही है। आधुनिक मशीनें कम समय, कम मेहनत और कम खर्च में फसलों से ज्यादा उत्पादन हासिल करने में मदद करती हैं। इन फ़ायदों को देखते हुए कई राज्य सरकारें अपने किसानों को आधुनिक कृषि यंत्र खरीदेने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। इसके तहत सरकारें आधुनिक कृषि यंत्र खरीदी पर बंपर सब्सिडी दे रही हैं, जिससे किसान भाई ये आधुनिक कृषि यंत्र अपने घर में ला पाएं और खेती किसानी में इनका उपयोग कर पाएं। कृषि यंत्रों की खरीद पर सब्सिडी देने के तहत बिहार और हरियाणा की राज्य सरकारें अपने किसानों को बंपर सब्सिडी दे रही हैं। इसके लिए दोनों राज्य की सरकारों ने योजनाओं को लागू कर दिया है। अगर बिहार सरकार की बात करें तो किसानों को 90 तरह के कृषि यंत्रों की खरीद पर पर 80 फीसदी तक अनुदान दिया जा रहा है। वहीं हरियाणा सरकार 55 तरह के कृषि यंत्रों की खरीद पर 50 फीसद तक का अनुदान दे रही है।

सब्सिडी प्राप्त करने के लिए बिहार के किसान ऐसे करें आवेदन

बिहार की सरकार ने कृषि यंत्रों की खरीद के लिए कृषि यंत्रीकरण योजना चलाई है, जिसके अंतर्गत सरकार 90 तरह के कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान देती है। ये कृषि यंत्र जुताई, बुवाई, निकाई, गुड़ाई, सिंचाई, कटाई आदि कार्यों के लिए खरीदे जा सकते हैं। इसके अलावा सरकार गन्ना और बागवानी फसलों की खेती के लिए कुछ कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान दे रही है।


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बिहार राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों ने कहा है, कि इस योजना का लाभ लेने के लिए किसान की बिहार राज्य में खेती योग्य जमीन होना अनिवार्य है। जो भी किसान इस योजना के अंतर्गत आधुनिक कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान प्रात करना चाहते हैं। वो 31 दिसम्बर 2022 के पहले बिहार राज्य के कृषि विभाग के OFMAS Portal या DBT Portal पर अपना आवेदन ऑनलाइन भर सकते हैं।

हरियाणा के किसान यहां आवेदन करके प्राप्त करें अनुदान

बिहार राज्य की तरह हरियाणा की सरकार भी कृषि यंत्रों की खरीद के लिए अपने किसानों को अनुदान प्रदान करती है। राज्य सरकार ने ऐसी 55 तरह की मशीनों का चयन किया है, जिनमें किसानों को अनुदान दिया जाएगा। ये मशीनें 1500 रुपये से लेकर 25 लाख रुपये तक की हो सकती हैं। जिनमें लगभग आधी कीमत की सब्सिडी दी जाती है। हरियाणा सरकार के कृषि विभाग ने अपने नोटिस में बताया है, कि कृषि यंत्र अनुदान योजना में आवेदन करने वाला किसान हरियाणा राज्य का होना चाहिए। इसके साथ ही किसान के पास खुद की खेती योग्य भूमि होना चाहिए। किसान भाई कृषि यंत्रों की खरीद पर सब्सिडी प्राप्त करने के लिए बागवानी विभाग की ऑफिशियल वेबसाइट https://hortnet.gov.in/StatesNewDesign/Login-har.aspx पर ऑनलाइन माध्यम से आवेदन करें। इसके अलावा इस योजना की ज्यादा जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विभाग के कार्यालय में भी संपर्क कर सकते हैं। साथ ही हेल्पलाइन नंबर 18001802021 पर भी फोन करके पूछताछ कर सकते हैं।

राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र सरकार भी दे रही है कृषि यंत्रों की खरीदी पर अनुदान

राज्य सरकारों के साथ-साथ अब केंद्र सरकार भी आधुनिक कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान दे रही है। ताकि किसान अपनी खेती की लागत को कम कर पाएं और उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो सके। इसके लिए केंद्र सरकार कृषि यंत्रीकरण पर उपमिशन योजना लाई है जिसके अंतर्गत अनुदान दिया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार राज्यों के सहयोग से किसान भाइयों को कृषि यंत्रों की खरीद पर 25 से 90 प्रतिशत की सब्सिडी देती है। इस योजना की ज्यादा जानकारी प्राप्त करने के लिए और आवेदन करने के लिए किसान भाई ऑफिशियल वेबसाइट https://agrimachinery.nic.in/ पर विजिट कर सकते हैं।
पॉली हाउस तकनीक से खीरे की खेती कर किसान कमा रहा बेहतरीन मुनाफा

पॉली हाउस तकनीक से खीरे की खेती कर किसान कमा रहा बेहतरीन मुनाफा

पॉली हाउस में खीरे का उत्पादन करने पर बारिश, आंधी, लू, धूप और सर्दी का प्रभाव नहीं होता है। आप किसी भी मौसम में पॉली हाउस के भीतर किसी भी फसल का उत्पादन कर सकते हैं। खीरा खाना प्रत्येक व्यक्ति को अच्छा लगता है। साथ ही, खीरा में आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए, विटामिन बी1, विटामिन बी6, विटामिन सी,विटामिन डी और पौटेशियम भरपूर मात्रा में विघमान रहता है। नियमित तौर पर खीरे का सेवन करने पर शरीर चुस्त-दुरुस्त रहता है। साथ ही, खीरे में बहुत ज्यादा फाइबर भी पाया जाता है। खीरे से कब्ज की परेशानी से छुटकारा मिलता है। यही कारण है, कि बाजार में खीरे की मांग वर्षों बनी रहती है। अब ऐसी स्थिति में मांग को पूर्ण करने के लिए किसान पॉली हाउस के भीतर खीरे का उत्पादन कर रहे हैं। इससे किसानों को अच्छी-खासी आमदनी हो रही है।

पॉली हाउस फसल को विभिन्न आपदाओं से बचाता है

वास्तव में पॉली हाउस में खीरे की खेती करने पर ताप, धूप, बारिश, आंधी, लू और ठंड का प्रभाव नहीं पड़ता है। आप किसी भी मौसम में पॉली हाउस के भीतर किसी भी फसल की खेती आसानी से कर सकते हैं। इससे उनका उत्पादन भी बढ़ जाता है और किसान भाइयों को मोटा मुनाफा प्राप्त होता है। इसी कड़ी में एक किसान हैं दशरथ सिंह, जिन्होंने पॉली हाउस तकनीक के जरिए खेती शुरू कर लोगों के सामने नजीर पेश की है। दशरथ सिंह अलवर जनपद के इंदरगढ़ के निवासी हैं। वह लंबे वक्त से पॉली हाउस के भीतर खीरे का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनको काफी अच्छी आमदनी भी अर्जित हो रही है। ये भी देखें: नुनहेम्स कंपनी की इम्प्रूव्ड नूरी है मोटल ग्रीन खीरे की किस्म

किसान खीरे की कितनी उपज हांसिल करता है

दशरथ सिंह पूर्व में पारंपरिक विधि से खेती किया करते थे। उनको पॉली हाउस के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं थी। एक दिन उनको उद्यान विभाग के संपर्क में आकर उनको पॉली हाउस तकनीक से खेती करने की जानकारी प्राप्त हुई है। इसके पश्चात उन्होंने 4000 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में पॉली हाउस का निर्माण करवाया और उसके अंदर खीरे का उत्पादन चालू कर दिया।

बहुत सारे किसान पॉली हाउस तकनीक से खेती करते हैं

किसान दशरथ सिंह का कहना है, कि पॉली हाउस की स्थापना करने पर उनको 15 लाख रुपये का खर्चा करना पड़ा। हालांकि, सरकार की ओर से उनको 23 लाख 50 हजार का अनुदान भी मिला था। उनको देख कर फिलहाल जनपद में बहुत सारे किसान भाइयों ने पॉली हाउस के भीतर खेती शुरू कर दी है।

लखन यादव ने पॉली हाउस तकनीक को लेकर क्या कहा

साथ ही, दशरथ सिंह के बेटे लखन यादव का कहना है, कि हम पॉली हाउस के भीतर केवल खीरे की ही खेती किया करते हैं। विशेष बात यह है, कि वह पॉली हाउस के भीतर सुपर ग्लो-बीज का उपयोग करते हैं, इससे फसल की उन्नति एवं प्रगति भी शीघ्र होती है। उनका यह भी कहना है, कि उन्हें एक बार की फसल में 60 से 70 टन खीरे की उपज अर्जित हुई थी। वहीं, एक फसल तैयार होने में करीब 4 से 5 माह का समय लगता है। बतादें, कि 60 से 70 टन खीरों का विक्रय कर वे 12 लाख रुपये की आय कर लेते हैं। इसमें से 6 लाख तक का मुनाफा होता है।
इस अनसुनी सब्जी से किसान सेहत और मुनाफा दोनों कमा सकते हैं

इस अनसुनी सब्जी से किसान सेहत और मुनाफा दोनों कमा सकते हैं

आज हम आपको इस लेख में ऐसी सब्जी के बारे में बताने वाले हैं, जिसका नाम आपने शायद ही सुना होगा। यदि आप बाजार में सहजता से उपलब्ध होने वाली त भिंडी, लौकी, बैगन और गोभी इत्यादि सब्जियों को खाकर ऊब चुके हैं, तो आज आपको हम बताएंगे उम्दा और पोषक तत्वों से युक्त जुकिनी सब्जी के बारे में। इस सब्जी को आप बड़े स्वाद से खा सकते हैं। 

सब्जियों का सेवन शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरुरी

सामान्यतौर पर घरों में लौकी, भिंडी एवं तोरई आदि जैसी सब्जियां बनाई जाती हैं। लेकिन हम आपको आज बताएंगे एक ऐसी सब्जी के बारे में जिसका नाम भी बहुत कम लोग जानते हैं। हर कोई जानता है, कि अच्छी सब्जी खाने से सेहत और बुद्धि भी अच्छी रहती है। यहां तक कि चिकित्स्कों का भी यही कहना होता है, कि अच्छी सेहत के लिए अच्छी सब्जियों का सेवन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस बात में कोई शक भी नहीं है। क्योंकि, शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक विकास के लिए अच्छी सब्जियों का सेवन करना अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसलिए आज हम इस लेख में आपको एक अनसुनी सब्जी के बारे में बताऐंगे। इस सब्जी का नाम जिकुनी है। अजीब से नाम की यह सब्जी एक प्रकार की तोरई है, जो की रंगीन होती है। 

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जुकिनी तोरी क्या और कैसी होती है

यह सब्जी बिल्कुल कद्दू की भांति दिखाई पड़ती है। परंतु, यह कद्दू नहीं होती है। इसका रंग, आकार एवं बाहरी छिलका बेसक कद्दू जैसा है। परंतु, खाने एवं बनाने में यह बिल्कुल तोरी जैसी होती है। बहुत सारे क्षेत्रों में यह भिन्न-भिन्न रंग की होती है, कुछ क्षेत्रों में यह पीले व हरे रंग की होती है। इसको भिन्न-भिन्न नाम जैसे कि नेनुआ, तोरी और तोरई आदि से भी जाना जाता है।

जिकुनी में विटामिन और खनिज भरपूर मात्रा में पाया जाता है

जिकुनी सब्जी के अंदर विभिन्न प्रकार के पोषण तत्व पाए जाते हैं। खबरों के मुताबिक, इसमें तकरीबन समस्त प्रकार के विटामिन व खनिजों का मिश्रण पाया जाता है। विटामिन ए, सी, के, पोटेशियम और फाइबर आदि की भरपूर मात्रा पाई जाती है। अब ऐसी स्थिति में यदि आप इस जुकिनी सब्जी का सेवन करते हैं, तो आप विभिन्न प्रकार की बीमारियों से निजात पा सकते हैं। 

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जिकुनी के एक पौधे से कितने किलो फल मिल सकेंगे

यदि आप इस जुकिनी सब्जी की खेती करते हैं, तो आप इससे काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। क्योंकि, इसके एक पौधे से तकरीबन 12 किलो तक फल प्राप्त होते हैं। परंतु, ध्यान देने योग्य बात यह है, कि इसकी खेती सितंबर एवं नवंबर के महीने में की जाती है। देखा जाए तो इसकी खेती से 25 से 30 दिन के अंदर ही फल आने चालू हो जाते हैं। फिर उसके पश्चात 40 से 45 दिनों के भीतर ही इसके फलों की तुड़ाई आरंभ कर दी जाती है। बाजार में जुकिनी सब्जी की कीमत तकरीबन 25 से 30 रुपए प्रति किलो के भाव होती है।

सरकारी नौकरी को छोड़कर मुकेश पॉलीहाउस के जरिए खीरे की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहा है

सरकारी नौकरी को छोड़कर मुकेश पॉलीहाउस के जरिए खीरे की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि युवा किसान मुकेश का कहना है, कि नेट हाउस निर्मित करने के लिए सरकार की ओर से अनुदानित धनराशि भी मिलती है। शुरुआत में नेट हाउस स्थापना के लिए उसे 65% की सब्सिडी मिली थी। हालांकि, वर्तमान में हरियाणा सरकार ने अनुदान राशि को घटाकर 50% कर दिया है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि आज भी सरकारी नौकरी के पीछे लोग बिल्कुल पागल हो गए हैं। प्रत्येक माता- पिता की यही चाहत होती है, कि उसकी संतान की सरकारी नौकरी लग जाए, जिससे कि उसकी पूरी जिन्दगी सुरक्षित हो जाए। अब सरकारी नौकरी बेशक निम्न स्तर की ही क्यों न हो। परंतु, आज हम एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करेंगे, जो कि अच्छी-खासी सरकारी नौकरी को छोड़ अब गांव आकर खेती कर रहा है।

किसान मुकेश कहाँ का रहने वाला है

दरअसल, हम जिस युवा किसान के संबंध में बात करने जा रहे हैं, उसका नाम मुकेश कुमार है। मुकेश हरियाणा के करनाल जनपद का रहने वाला है। पहले वह हरियाणा बोर्ड में सरकारी नौकरी करता था। नौकरी के दौरान मुकेश को प्रति महीने 45 हजार रुपये सैलरी मिलती थी। परंतु, इस सरकारी कार्य में उसका मन नहीं लगा, तो ऐसे में उसने इस नौकरी को लात मार दी। आज वह अपनी पुश्तैनी भूमि पर नेट हाउस विधि से खेती कर रहा है, जिससे उसको काफी अच्छी कमाई हो रही है।

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किसान मुकेश लोगों को रोजगार मुहैय्या करा रहा है

किसान मुकेश अन्य बहुत से किसानो के लिए भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रहे हैं। किसान मुकेश का कहना है, कि उसने अपनी भूमि पर चार नेट हॉउस तैयार कर रखे हैं। इनके अंदर किसान मुकेश खीरे की खेती करते हैं। किसान मुकेश के मुताबिक खीरे की मांग गर्मियों में काफी ज्यादा बढ़ जाती है। अब ऐसे में किसान मुकेश लगभग 2 वर्षों से खीरे की खेती कर रहा। बतादें कि इससे किसान मुकेश को काफी अच्छी कमाई हो रही है। यही वजह है, कि वह आहिस्ते-आहिस्ते खीरे की खेती का रकबा और ज्यादा बढ़ाते गए हैं। इसके साथ साथ मुकेश ने अपने आसपास के बहुत से लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया है।

खीरे की वर्षभर खेती की जा सकती है

मुकेश का कहना है, कि एक नेट हाउस निर्मित करने के लिए ढ़ाई से तीन लाख रुपये की लागत आती है। परंतु, इसके अंदर खेती करने पर आमदनी काफी ज्यादा बढ़ जाती है। युवा किसान का कहना है, कि खीरे की बहुत सारी किस्में हैं, जिसकी नेट हाउस के अंदर सालों भर खेती की जा सकती है।

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ड्रिप विधि से सिंचाई करने पर जल की काफी कम बर्बादी होती है

किसान मुकेश का कहना है, कि उनको खीरे की खेती की सबसे बड़ी खासियत यह लगी है कि इसकी खेती में जल की काफी कम खपत होती है। दरअसल, नेट हॉउस में ड्रिप विधि के माध्यम से फसलों की सिंचाई की जाती है। ड्रिप विधि से सिंचाई करने से जल की बर्बादी बेहद कम होती है। इसके साथ ही पौधों की जड़ो तक पानी पहुँचता है। किसान मुकेश अपने खेत में पैदा किए गए खीरे की सप्लाई दिल्ली एवं गुरुग्राम समेत बहुत सारे शहरों में करता है। वर्तमान में वह 15 रूपए किलो के हिसाब से खीरे बेच रहा है।